रविवार, 24 अगस्त 2025

(PART 1) मकान मालकिन की भतीजी, "रिया"

 उस रात बारिश बहुत तेज़ हो रही थी। हवा में नमी और मौसम में एक अजीब सी खामोशी थी। मैं ऑफिस से देर रात लौटा था, पूरे दिन की थकान और सिर में हल्का दर्द लेकर। जैसे ही दरवाज़ा खोला, सामने वो खड़ी थी — मेरी मकान मालकिन की भतीजी, "रिया"।


उसकी आंखों में कुछ अलग ही चमक थी उस रात। हल्की भीगी हुई सलवार-कुर्ते में वो और भी हसीन लग रही थी।


"भैया, मम्मी बाहर गई हैं… और बाहर इतनी बारिश हो रही है… क्या मैं कुछ देर आपके यहाँ बैठ सकती हूँ?" उसने धीमी आवाज़ में कहा।


मैंने बिना कुछ सोचे "हाँ" कहा, लेकिन दिल की धड़कनें तेज़ हो चुकी थीं।


रिया कमरे में आई और सोफे पर बैठ गई। मैंने उसे एक तौलिया दिया, उसके गीले बालों से पानी टपक रहा था। मैं किचन में गया और चाय बनाने लगा। चाय का प्याला लेकर जब मैं लौटा, तो वो मेरी तरफ ऐसे देख रही थी जैसे कुछ कहना चाहती हो।


"आप अकेले रहते हो न?" उसने पूछा।


मैंने मुस्कुराते हुए सिर हिलाया। फिर वो थोड़ा पास खिसक आई… और हमारी बातें धीमे-धीमे एक अजीब सी गर्माहट में बदल गईं...


रिया चाय का घूंट भरते हुए मुझे देख रही थी। बारिश अब भी खिड़की के शीशों पर अपनी आवाज़ से माहौल को और भी गहरा बना रही थी।


"आपको अकेले रहते डर नहीं लगता?" उसने पूछा, उसकी आवाज़ में शरारत थी।


"कभी-कभी लगता है… लेकिन अब तो तुम हो," मैंने जवाब दिया, उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई।


वो उठी और खिड़की के पास जाकर बारिश देखने लगी। उसके गीले बाल उसकी पीठ से लिपटे हुए थे और कमरे की हल्की रौशनी में उसका चेहरा और भी निखर रहा था।


मैं पास गया… और उसके बिल्कुल पीछे खड़ा हो गया। उसने पलट कर मुझे देखा – हमारी आंखें कुछ सेकंड के लिए टकराईं, और फिर उसने नज़रें झुका लीं।


"तुम्हारे बाल अब भी भीगे हैं… बीमार पड़ जाओगी," मैंने कहा और तौलिया उसके कंधों पर रख दिया।


वो मुस्कराई, "आप ही तो कह रहे थे कि अब मैं हूँ… तो बीमार नहीं पड़ूँगी।"


उसके इन शब्दों में जो इशारा था, वो साफ था।


मैंने हल्के से उसके बालों को तौलिये से पोंछा। धीरे-धीरे उसके इतने पास आ गया कि उसकी सांसें मेरे सीने से टकराने लगीं। वो शांत खड़ी थी… लेकिन उसकी धड़कनों की रफ्तार तेज़ हो चुकी थी।


"रिया…" मैंने उसका नाम धीरे से पुकारा।


उसने मेरी तरफ देखा… उसकी आंखों में अब कोई झिझक नहीं थी।


मैंने उसके गाल को हल्के से छुआ… और फिर 

हमारा फासला खुद-ब-खुद मिटने लगा।


(PART 1) मकान मालकिन की भतीजी, "रिया"

 उस रात बारिश बहुत तेज़ हो रही थी। हवा में नमी और मौसम में एक अजीब सी खामोशी थी। मैं ऑफिस से देर रात लौटा था, पूरे दिन की थकान और सिर में हल...